देश में सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग सेक्टर में काम करने वालों की कमाई जबरदस्त रहती है, लेकिन इसी के साथ उन्हें इनकम टैक्स का भारी बोझ भी झेलना होता है. ऐसे में अगर आप न्यू पेंशन सिस्टम (NPS) की मदद से 50,000 रुपए से ज्यादा का टैक्स बचा पाएं, तो कैसा हो? चलिए समझते हैं पूरी बात
इनकम टैक्स कानून की ओल्ड रिजीम के तहत लोगों को जहां 80C के तहत 1.5 लाख रुपए की बचत करने का मौका मिलता है. वहीं एनपीएस लोगों को इस छूट दायरे से अलग टैक्स-फ्री इनकम बचाने का मौका देता है. जबकि एनपीएस का फायदा न्यू टैक्स रिजीम में भी उठाया जा सकता है.
न्यू टैक्स रिजीम में NPS का फायदा
इनकम टैक्स कानून की धारा-80CCD(2) के तहत न्यू टैक्स रिजीम में भी आप एनपीएस से टैक्स सेविंग कर सकते हैं. ये आपकी बेसिक सैलरी के 10 प्रतिशत के बराबर तक हो सकती है. दरअसल एनपीएस में कोई एम्प्लॉई जो योगदान करता है, उस पर नई टैक्स रिजीम में टैक्स डिडक्शन का फायदा मिलता है. पेंशन स्कीम में आम तौर पर एम्प्लॉई के योगदान में उसकी बेसिक सैलरी के 10 प्रतिशत के बराबर का कंट्रीब्यूशन टैक्स-फ्री होती है, नई टैक्स रिजीम में ये लिमिट 14 प्रतिशत तक है.
ऐसे में यदि कोई एम्प्लॉई अपनी कंपनी या एम्प्लॉयर द्वारा ऑफर की जाने वाली एनपीएस को अपना लेता है, तो उसकी सैलरी से किया गया 14 प्रतिशत तक का कंट्रीब्यूशन टैक्स फ्री हो जाएगा.
बचेगा 50,000 से ज्यादा टैक्स
ऊपर हमने सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स की बात की, जिनकी सैलरी आम तौर पर बढ़िया होती है. ऐसे में मान लेते हैं कि किसी एम्प्लॉई की बेसिक सैलरी 1 लाख रुपए महीना है. तब उसका एनपीएस कंट्रीब्यूशन करीब 14,000 रुपए महीना होगा. तब उसके ओवरऑल इनकम टैक्स में 50,000 रुपए से अधिक की कमी आएगी.
फिक्स्ड डिपॉजिट छोड़ें, डेट फंड में पैसा लगाएं
अगर आप अपनी टैक्स सेविंग और बढ़ाना चाहते हैं, तब आपको फिक्स्ड डिपॉजिट की बजाय डेट फंड में पैसा लगाना चाहिए. एफडी में हर साल मिलने वाले ब्याज पर टैक्स लगता है, जबकि डेट फंड में लगाए गए पैसे पर टैक्स सिर्फ तब लगता है, जब उस पैसे को निकाला जाता है.