Rishabh Pant Birthday: दिल्ली का वो गुरुद्वारा, जिसकी शरण में पड़ी ऋषभ पंत के करियर की बुनियाद

करीब साढ़े 9 साल पहले ऋषभ पंत का नाम पहली बार भारतीय क्रिकेट की चर्चाओं का हिस्सा बना, जब एक ही दिन में इस विकेटकीपर-बल्लेबाज ने दोहरा धमाका किया. ये 6 फरवरी 2016 की बात है, जब बांग्लादेश के फातुल्लाह में पंत ने अंडर-19 वर्ल्ड कप के क्वार्टर फाइनल में नामीबिया के खिलाफ 111 रन की विस्फोटक पारी खेलकर भारत को सेमीफाइनल में पहुंचाया था. इधर पंत ने ये शतक जमाया, उधर बेंगलुरु में IPL 2016 सीजन के ऑक्शन में उन पर करोड़ों की बारिश हो गई. 18 साल की उम्र में ये तहलका मचाने वाला खिलाड़ी आज यानि 4 अक्टूबर को 28 साल का हो गया है और उसी तरह से हर किसी को चौंका रहा है.

2017 में इंडियन टीम में अपनी जगह बनाने वाले ऋषभ पंत का जन्म 4 अक्टूबर 1997 को उत्तराखंड के रुड़की में हुआ था. मगर उनका क्रिकेट करियर की बुनियाद दिल्ली में पड़ी, जिसमें पंत की मेहनत, उनके परिवार की हिम्मत और कोच की समझाइश के अलावा एक मशहूर गुरुद्वारे ने भी बड़ी भूमिका निभाई. पंत ने उस दौर में ये खेल शुरू किया, जब भारत समेत इंटरनेशनल क्रिकेट में टीम इंडिया के विकेटकीपर-बल्लेबाज एमएस धोनी की धूम थी. धोनी की ही तरह पंत ने भी विकेटकीपर बनने की राह चुनी लेकिन धोनी की तरह छोटे शहर से होना उनके आड़े भी आया.

उत्तराखंड में वो वक्त क्रिकेट के लिहाज से कुछ नहीं था क्योंकि स्टेट की कोई संगठित क्रिकेट एसोसिएशन और स्टेट टीम भी नहीं थी. ऐसे में छोटे से ऋषभ पंत के परिवार ने उन्हें दिल्ली भेजकर किस्मत आजमाने की ठानी. ऋषभ सिर्फ 12 साल के थे, जब उन्होंने रात की बस से दिल्ली का सफर तय करना शुरू किया और इसमें उनकी मां सरोज पंत सबसे बड़ा किरदार साबित हुईं, जो हमेशा अपने मासूम बेटे को लेकर दिल्ली पहुंचतीं ताकि वो मशहूर सोनेट क्रिकेट क्लब के दिग्गज कोच तारक सिन्हा की निगरानी में क्रिकेट सीख सके.

मगर पंत परिवार का न कोई रिश्तेदार इस शहर में था और न ही आर्थिक रूप से इतनी संपन्नता थी कि हमेशा होटल बुक करके ठहरा जा सके. ऐसे में साउथ दिल्ली के मशहूर गुरुद्वारा मोती बाग साहिब में ऋषभ और उनकी मां ने शरण ली. यहीं कई-कई रात रुककर, लंगर में खाना खाकर और फिर प्रैक्टिस के लिए एकेडमी जाकर ऋषभ पंत ने अपने क्रिकेट करियर की उड़ान भरी. वैसे तो दुनिया के किसी भी कोने में गुरुद्वारा हो, ऐसी शरण हर जगह मिलती है लेकिन मोती बाग साहिब अपने आप में बहुत खास है क्योंकि इसका सम्बंध सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह जी से है.

माना जाता है कि 1707 में मुगल बादशाह बहादुरशाह से मिलने के लिए आते हुए गुरु गोबिंद सिंह ने इसी जगह अपना शिविर लगाया था. यहीं से उन्होंने एक तीर मारा था जो करीब 8 मील दूर सीधे बहादुरशाह के पैरों के करीब गिरा था, जिसने मुगल बादशाह को चौंका दिया था. गुरु गोबिंद सिंह जी कई दिन तक यहां रहे थे और इसलिए ही मोती बाग साहिब की बहुत मान्यता है.

अब किस्मत समझिए, मान्यता समझिए या सिर्फ संयोग कहिए, गुरु गोबिंद सिंह जी से जुड़े गुरुद्वारे में शरण लेकर क्रिकेट करियर बनाने वाले पंत में भी कम बहादुरी नहीं है. 2017 में IPL सीजन के दौरान ही पंत के पिता का निधन हो गया था लेकिन सिर्फ 19 साल की उम्र में इतना बड़ा झटका झेलने और पिता का अंतिम संस्कार करने के 24 से 48 घंटों के अंदर पंत बेंगलुरु गए और वहां दिल्ली डेयरडेविल्स की ओर से रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु के खिलाफ 36 गेंदों में 57 रन की जुझारू पारी खेली.