Kognivera International Polo Cup 2025: रोमांचक मुकाबले में भारत ने अर्जेंटीना को हराकर जीता खिताब

Kognivera International Polo Cup 2025: दिल्ली का ऐतिहासिक जयपुर पोलो ग्राउंड शनिवार, 25 अक्टूबर को एक जबरदस्त जीत का गवाह बना. इस ग्राउंड पर खेले गए कोग्नीवेरा इंटरनेशनल पोलो कप के फ़ाइनल में टीम इंडिया ने पोलो की दुनिया की सबसे बेहतरीन टीमों से एक अर्जेंटीना को एक रोमांचक मुकाबले में 10-9 से हरा दिया. इस दौरान दोनों टीमों के बीच जबरदस्त मुकाबला देखने को मिला.

भारतीय टीम ने किया शानदार प्रदर्शन

जयपुर पोलो ग्राउंड पर खेले गए इस फाइनल मुकाबले में गेंद की रफ्तार और खिलाड़ियों की फुर्ती देखने लायक थी. ये मुकाबला केवल एक खेल नहीं, बल्कि जुनून, ताक़त और बेहतरीन साझेदारी का प्रतीक बन गया. सिमरन सिंह शेरगिल की कप्तानी में भारतीय टीम ने बेहतरीन प्रदर्शन किया. वहीं टीम के स्टार खिलाड़ी सवाई पद्मनाभ सिंह के सटीक स्ट्रोक्स और शानदार रणनीति ने अर्जेंटीना को कहीं टिकने ही नहीं दिया. जीत के बाद भारतीय कप्तान ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि मेहमान टीम के खिलाफ जीतना हमारे लिए एक अविश्वसनीय पल है. हर खिलाड़ी ने शानदार खेल दिखाया. ये भारतीय पोलो के लिए गर्व का दिन है.

आयोजकों ने क्या कहा?

मैच के आयोजक कोग्नीवेरा आईटी सॉल्यूशंस के CEO और एमडी कमलेश शर्मा ने कहा कि पोलो शालीनता, धैर्य और वैश्विक मित्रता का प्रतीक है. कोग्रीवेरा इंटरनेशनल पोलो कप में भारत की जीत की मेजबानी और साक्षी बनना वाकई काफी खास रहा है. हमें खुशी है कि ये खेल संस्कृतियों को जोड़ता है. इस शानदार मुकाबले को देखने के लिए हजारों लोग मौजूद थे.

केंद्रीय पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हुए. उनके साथ केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू, सांसद नवीन जिंदल और मशहूर कवि डॉ. कुमार विश्वास कई लोग इस दौरान मौजद रहे. पोलो के इस महाकुंभ में भारतीय टीम ने दिखा दिया कि वो किसी से कम नहीं हैं.

पोलो खेल से जुड़े कुछ दिलचस्प फैक्ट

1. दुनिया का सबसे पुराना टीम गेम: पोलो की शुरुआत करीब 2,500 साल पहले फारस (आज का ईरान) में हुई थी.

2. युद्ध प्रशिक्षण से जन्मा खेल: शुरुआत में ये सैनिकों के लिए घुड़सवारी और युद्ध प्रैक्टिस का एक तरीका था.

3. साम्राज्यों के साथ फैला खेल: फारस से ये खेल एशिया, चीन और भारत तक फैल गया और राजघरानों का पसंदीदा शौक बन गया.

4. आधुनिक पोलो भारत से शुरू हुआ: 19वीं सदी में ब्रिटिश अधिकारियों ने मणिपुर में स्थानीय लोगों को ‘सगोल कांगजई’ नामक खेल खेलते देखा और वहीं से आधुनिक पोलो का जन्म हुआ.

5. दुनिया का पहला पोलो क्लब भारत में: कलकत्ता पोलो क्लब (1862) दुनिया का सबसे पुराना पोलो क्लब है जो आज भी सक्रिय है.

6. भारतीय सेना का योगदान: भारतीय सेना ने आजादी के बाद इस खेल को जिंदा रखने में बड़ी भूमिका निभाई.

7. जयपुर की शाही टीम: महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय के नेतृत्व में जयपुर पोलो टीम 193040 के दशक में दुनिया की सबसे बेहतरीन टीमों में गिनी जाती थी.

खेल के नियम और रोचक बातें

सबसे तेज टीम स्पोर्ट: पोलो में खिलाड़ी घोड़े पर 60 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से खेलते हैं.
हर टीम में 4 खिलाड़ी: मैच को “चक्का” नामक हिस्सों में बांटा जाता है, जो करीब 78 मिनट का होता है.

महिला और पुरुष साथ खेल सकते हैं: पोलो कुछ ऐसे खेलों में से है जहां महिलाएं और पुरुष बराबरी से खेलते हैं.

हर गोल के बाद दिशा बदलती है: इससे मैदान या हवा के असर से किसी टीम को फायदा न मिले।

पोलो पोनी यानी घोड़े

“पोनी” दरअसल असली घोड़े होते हैं: इनकी ऊंचाई आम तौर पर 14.2 से 16 हैंड होती है.

एक मैच में कई घोड़े: खिलाड़ी एक मैच में 4 से 8 घोड़े तक बदलते हैं ताकि कोई थके नहीं.

लंबा प्रशिक्षण: एक पोलो पोनी को पूरी तरह तैयार होने में 3 से 5 साल लगते हैं.

ग्लोबल लोकप्रियता

1. 80 से ज्यादा देशों में पोलों खेला जाता है. अर्जेंटीना, भारत, ब्रिटेन, अमेरिका-हर जगह इसका जलवा है.

2. अर्जेंटीना पोलो का बादशाह है. दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी और घोड़े यहीं से आते हैं.

3. ये राजघरानों का पसंदीदा खेल है. महाराजाओं से लेकर ब्रिटिश प्रिंस चार्ल्स और प्रिंस विलियम तक सभी को पोलो का जुनून रहा है.

मजेदार जानकारियां

1. पोलो ओलंपिक में भी खेला गया है. इसे 1900 से 1936 तक पांच बार ओलंपिक में शामिल किया गया.

2. स्नो पोलो भी होता है. बर्फ से ढके मैदान पर, जैसे स्विट्जरलैंड के सेंट मॉरिट्ज में खेला जाता है.

3. हाथी पोलो और ऊंट पोलो भी असली हैं. भारत, नेपाल और मध्य एशिया में इनका आयोजन किया जाता है.