आईपीएल 2026 का ऑक्शन करीब आते ही ट्रेडिंग विंडो सुर्खियों में छा गई है. यह एक खास सिस्टम है जो फ्रेंचाइजी को ऑक्शन से पहले अपनी टीम को मजबूत बनाने का मौका देता है. बिना ऑक्शन के खिलाड़ी एक टीम से दूसरी टीम में जा सकते हैं, जिससे रणनीति में बड़ा बदलाव आता है. इस बार राजस्थान रॉयल्स और चेन्नई सुपर किंग्स के बीच ट्रेड होने की उम्मीद है. रिपोर्ट के मुताबिक राजस्थान रॉयल्स संजू सैमसन के बदले रवींद्र जडेजा और सैम करन को CSK से ट्रेड कर सकती है. आइए समझते हैं कि यह ट्रेड विंडो क्या है, कैसे काम करती है और इसके नियम क्या हैं.
क्या है IPL ट्रेड विंडो?
ट्रेड विंडो वो समय है जिसमें आईपीएल की कोई भी फ्रेंचाइजी दूसरी फ्रेंचाइजी के साथ खिलाड़ियों की अदला-बदली कर सकती है. सभी 10 टीमें इस विंडो का इस्तेमाल अपनी कमजोर कड़ियों को मजबूत करने के लिए करती हैं. यह विंडो आईपीएल सीजन खत्म होने के ठीक 7 दिन बाद शुरू होती है और ऑक्शन से 7 दिन पहले बंद हो जाती है. इस दौरान कोई फ्रेंचाइजी किसी भी बाकी 9 टीमों से खिलाड़ी ट्रेड कर सकती है. हालांकि, एक अहम नियम यह है कि ऑक्शन में हाल ही में खरीदे गए नए खिलाड़ी को सीजन शुरू होने से पहले ट्रेड नहीं किया जा सकता. उन्हें अगले सीजन के बाद ही ट्रेडिंग के लिए उपलब्ध माना जाता है. अच्छी बात यह है कि ट्रेड की कोई ऊपरी नहीं है, टीम जितने चाहे उतने खिलाड़ी ट्रेड कर सकती है.
ट्रेडिंग के तीन अहम तरीके
खिलाड़ियों की ट्रेडिंग तीन अलग-अलग तरीकों से हो सकती है, जो फ्रेंचाइजी की जरूरत और समझौते पर निर्भर करता है.
बिना पैसे के स्वैप: दोनों टीमें बिना किसी कैश ट्रांजेक्शन के खिलाड़ियों की अदला-बदली कर सकती हैं. अगर स्वैप होने वाले खिलाड़ियों की सैलरी में अंतर है, तो ज्यादा सैलरी वाले खिलाड़ी को लेने वाली टीम को अंतर की राशि दूसरी टीम को चुकानी पड़ती है. जैसे संजू सैमसन और रवींद्र जडेजा 18-18 करोड़ के खिलाड़ी हैं, ऐसे में सिर्फ इन दोनों खिलाड़ियों के बीच ट्रेड होता है तो किसी भी टीम को अलग से रकम नहीं देनी होगी.
कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू ट्रांसफर: अगर एक टीम किसी खिलाड़ी को उसकी मूल खरीद राशि के बराबर पैसे देकर लेना चाहती है, तो ऐसा हो सकता है. मिसाल के तौर पर, अगर कोई खिलाड़ी 10 करोड़ रुपए में खरीदा गया था, तो नई टीम को उतनी ही रकम पुरानी टीम को देकर उसे अपने साथ जोड़ना होगा. इसमें किसी दूसरे खिलाड़ी को ट्रेड करने की जरूरत नहीं होगी है.
म्यूचुअल एग्रीमेंट पर फिक्स्ड अमाउंट: दोनों फ्रेंचाइजी आपस में एक निश्चित राशि तय कर सकती हैं और उसी के आधार पर ट्रेड पूरा होता है. इस राशि को सार्वजनिक नहीं किया जाता, जो डील को गोपनीय बनाता है. जैसा की मुंबई इंडियंस ने हार्दिक पंड्या को गुजरात टाइटंस से ट्रेड करते हुए किया था.
ट्रेडिंग में किन बातों का ध्यान रखना जरूरी?
खिलाड़ी की सहमति अनिवार्य: बिना खिलाड़ी की मंजूरी के ट्रेड नहीं हो सकता. उसकी राय सबसे ऊपर है.
टीम की मंजूरी: जिस टीम से खिलाड़ी जा रहा है, उसे भी ट्रेड पर सहमत होना पड़ता है.
सैलरी के अंतर का एडजस्टमेंट: अगर दो खिलाड़ी स्वैप हो रहे हैं और उनकी सैलरी अलग-अलग है, तो ज्यादा कमाई वाले खिलाड़ी को लेने वाली टीम को अंतर की राशि देनी होती है. जो उनके पर्स से कम की जाती है.