Women’s World Cup Final: जमीन पर सोने से लेकर वर्ल्ड कप के फाइनल तक का सफर, 52 साल में कैसे बदली भारतीय महिला टीम की तकदीर?

Women’s World Cup Final : हरमनप्रीत कौर की अगुवाई में भारतीय महिला टीम नवी मुंबई के डीवाई पाटिल स्टेडियम में इतिहास रचने के इरादे से उतरेगी. महिला वनडे वर्ल्ड के खिताबी मुकाबले में टीम इंडिया की टक्कर साउथ अफ्रीका से होगी. इस मुकाम तक पहुंचने के लिए भारतीय महिला टीम की खिलाड़ियों ने काफी संघर्ष किया था. कभी इस टीम के पास पैसे तक नहीं थे और टीम के खिलाड़ी जमीन पर सोते थे. करीब 52 साल के लंबे संघर्ष के बाद भारतीय महिला टीम ने अपनी मेहनत के दम पर अपनी तकदीर बदली.

कैसे हुआ भारतीय महिला क्रिकेट का विकास?

बिना टॉयलेट वाले कमरे में सोने, यात्रा के लिए पैसे जुटाने और क्रिकेट किट शेयर करने से लेकर अब खचाखच भरे स्टेडियमों में खेलने और वर्ल्ड कप खिताब जीतने तक भारतीय महिला क्रिकेट ने एक असाधारण सफर तय किया है. साल 1973 में गठित भारतीय महिला क्रिकेट संघ (WCAI) की पूर्व सचिव नूतन गावस्कर ने उन दिनों को याद करते हुए बताया, “न पैसा था, न प्रायोजक और विदेशी दौरा एक कठिन परीक्षा होती थी, इसके बावजूद महिला खिलाड़ियों ने हार नहीं मानी”.

महान क्रिकेटर सुनील गावस्कर की छोटी बहन नूतन ने याद किया कि कैसे खिलाड़ी कभी केवल जुनून और गर्व के लिए खेलती थीं. उन्होंने कहा, “हमें बताया गया था कि महिला क्रिकेट कोई प्रोफेशनल खेल नहीं है. पैसा नहीं था, क्योंकि हमें प्रोफेशनल नहीं माना जाता था”. उन्होंने इंटरनेशनल दौरों के लिए पैसे जुटाने के संघर्ष के बारे में बताया कि जब महिला टीम न्यूजीलैंड दौरे पर जाती थी तो वो प्रवासी भारतीय परिवारों के घर पर रुकती थीं. एक बार एक्ट्रेस मंदिरा बेदी ने इंग्लैंड दौरे के लिए हवाई टिकट अपने पैसे से खरीदकर दिया था. उन्होंने बताया कि एयर इंडिया कभी-कभी टिकट प्रायोजित करता था, क्योंकि खिलाड़ी देश का प्रतिनिधित्व कर रहे होते थे.

टीम के पास होते थे केवल 3 बैट

1970 और 1980 के दशक के रोमांचक दिनों को याद करते हुए नूतन ने बताया कि महिला टीम के पास क्रिकेट किट भी ज्यादा नहीं थे. यहां तक कि बैट भी शेयर किए जाते थे. टीम के पास केवल तीन बैट होते थे. दो सलामी बल्लेबाजों के पास होते थे और नंबर तीन बल्लेबाज तीसरे बैट का इस्तेमाल करता था. जब कोई सलामी बल्लेबाज आउट हो जाता था, तो नंबर चार बल्लेबाज उसका बैट और पैड ले लेता था.

उन्होंने बताया कि जनरल डिब्बों में 36 से 48 घंटे की रेल यात्राएं होती थीं और महिलाएं अपनी जेब से रेल का किराया चुकाती थीं. टीम अक्सर 20 लोगों के लिए चार टॉयलेट वाले डॉर्मिटरी में रुकती थीं. स्थानीय संघ द्वारा सीमित बजट में टूर्नामेंट आयोजित किए जाने के कारण दाल एक बड़े प्लास्टिक के बर्तन में परोसी जाती थी.

जमीन पर सोते थे खिलाड़ी

भारत की पहली महिला टेस्ट कप्तान शांता रंगास्वामी ने बताया कि डॉर्मिटरी में हम जमीन पर ही सोते थे और हमें अपना बिस्तर भी खुद ढोना पड़ता था. हमारी क्रिकेट किट हमारी पीठ पर होती थी और एक हाथ में सूटकेस होता था. शांता रंगास्वामी का मानना है कि मौजूदा टीम अपने लगन और मेहनत से यहां तक पहुंची है. उन्होंने कहा कि हमें बहुत खुशी है कि इस समय की खिलाड़ियों को सभी सुविधाएं मिल रही हैं. वे इसकी हकदार हैं. करीब 52 साल पहले हमने जो नींव रखी थी, वो अब फल दे रही है.