सनातन धर्म में देवी का वास मुख्य रूप से पहाड़ों पर माना गया है, तभी तो पहाड़ों वाली माता का नाम भी उन्हें दिया गया है। ऐसे में आज हम आपको पहाड़ों में बने देवी मां के प्रमुख मंदिरों के बारे में बता रहे हैं, जिनके संबंध में यह मान्यता है कि देवी मां आज भी यहां निवास करती हैं। ऐसे में आज हम आपको देवभूमि में बने देवी मां के उन प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि यहां आज भी चमत्कार होते हैं…
– धारी देवी मंदिर (DHARI DEVI TEMPLE , PAURI GARHWAL !!)
धारी देवी मंदिर , देवी काली माता को समर्पित एक हिंदू मंदिर है । धारी देवी को उत्तराखंड की संरक्षक व पालक देवी के रूप में माना जाता है । धारी देवी का पवित्र मंदिर बद्रीनाथ रोड पर श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। धारी देवी की मूर्ति का ऊपरी आधा भाग अलकनंदा नदी में बहकर यहां आया था तब से मूर्ति यही पर है। तब से यहां देवी “धारी” के रूप में मूर्ति पूजा की जाती है।
मूर्ति की निचला आधा हिस्सा कालीमठ में स्थित है, जहां माता काली के रूप में आराधना की जाती है। माँ धारी देवी जनकल्याणकारी होने के साथ ही दक्षिणी काली मां भी कहा जाता है। माना जाता है कि धारी देवी दिन के दौरान अपना रूप बदलती है ।
स्थानीय लोगों के मुताबिक, कभी एक लड़की, एक औरत, और फिर एक बूढ़ी औरत का रूप बदलती है। पुजारियों के अनुसार मंदिर में मां काली की प्रतिमा द्वापर युग से ही स्थापित है । कालीमठ एवं कालीस्य मठों में मां काली की प्रतिमा क्रोध मुद्रा में है , परन्तु धारी देवी मंदिर में माँ काली की प्रतिमा शांत मुद्रा में स्थित है ।
– नंदा देवी मंदिर (NANDA DEVI TEMPLE)
कुमाऊं क्षेत्र के उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले के पवित्र स्थलों में से एक “नंदा देवी मंदिर” का विशेष धार्मिक महत्व है ।
इस मंदिर में “देवी दुर्गा” का अवतार विराजमान है। समुन्द्रतल से 7816 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर चंद वंश की “ईष्ट देवी” मां नंदा देवी को समर्पित है। नंदा देवी मां दुर्गा का अवतार और भगवान शंकर की पत्नी है और पर्वतीय आँचल की मुख्य देवी के रूप में पूजी जाती है।
नंदा देवी गढ़वाल के राजा दक्षप्रजापति की पुत्री है , इसलिए सभी कुमाउनी और गढ़वाली लोग उन्हें पर्वतांचल की पुत्री मानते है। कई हिन्दू तीर्थयात्रा के धार्मिक रूप में इस मंदिर की यात्रा करते है क्यूंकि नंदा देवी को “बुराई के विनाशक” और कुमुण के घुमन्तु के रूप में माना जाता है। इसका इतिहास 1000 साल से भी ज्यादा पुराना है। नंदा देवी का मंदिर , शिव मंदिर की बाहरी ढलान पर स्थित है।
– मां उमा देवी मंदिर (MAA UMA DEVI TEMPLE , CHAMOLI !!)
मां उमा देवी मंदिर में माता पारवती की कात्यायनी रूप में पूजा की जाती है। 20 वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में उमा देवी मंदिर अस्तित्व में आया था। इस मंदिर के गृह में स्थापित प्रस्तर प्रतिमाएं 12वीं व 13 वर्ष की आंकी गई हैं।
मां उमा देवी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह पवित्र मंदिर एकमात्र ऐसा स्थान है कि जहाँ माता पारवती ने शिव को पति रूप में पाने के लिए अपर्णा रूप में निर्जला वर्त रखकर भगवान शिवजी की उपासना की थी। इस मंदिर के स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने आठवी शताब्दी में की थी परन्तु कुछ लोगों के अनुसार मां उमा देवी की मूर्ति इसके बहुत पहले ही स्थापित थी। इस मंदिर के बारे में यह मान्यता है कि इस मंदिर में स्थापित मां उमा देवी की मूर्ति इससे भी काफी पहले से मौजूद है।
– कसार देवी मंदिर ! KASAAR DEVI TEMPLE
शक्ति के आलौकिक रूप का प्रत्यक्ष दर्शन उत्तराखंड देवभूमि में होता है। दरअसल उत्तराखंड राज्य अल्मोड़ा जिले के निकट “कसार देवी” एक गांव है। जो अल्मोड़ा क्षेत्र से 8 km की दुरी पर काषय (कश्यप) पर्वत में स्थित है। यह स्थान “कसार देवी मंदिर” के कारण प्रसिद्ध है। यह मंदिर, दूसरी शताब्दी के समय का बताया जाता है।
उत्तराखंड के अल्मोडा जिले में मौजूद मां कसार देवी की शक्तियों का एहसास इस स्थान के कड़-कड़ में होता है। अल्मोड़ा बागेश्वर हाईवे पर “कसार” नामक गांव में स्थित ये मंदिर कश्यप पहाड़ी की चोटी पर एक गुफानुमा जगह पर बना हुआ है। कसार देवी मंदिर में मां दुर्गा साक्षात प्रकट हुईं थीं। मंदिर में मां दुर्गा के आठ रूपों में से एक रूप “देवी कात्यायनी” की पूजा की जाती है।
– मां उल्का देवी मंदिर (MAA ULKA DEVI TEMPLE)-
यहां आने वाले भक्तों को सांसारिक भागमभाग से अलग अनोखा सुकून मिलता है। हिमालय की मनोरम पहाड़ियों में स्थित स्यांकोट गांव में यह मंदिर स्थित है। यहां के लोगो का कहना है कि यह मंदिर यहां महर लोगों द्वारा स्थापित की गयी है यदपि यह स्था आदि काल से ही देवी का निवास स्थान रहा है। मां उल्का देवी को शक्ति उपासना का प्रमुख केंद्र माना जाता है।
मां उल्का को क्षेत्र की रक्षिका के रूप में जानी जाती है मां उल्का को भगवती के नाम से भी जाना जाता है। मां उल्का के मंदिर में दूर-दूर से लोग पूजा करने आते है। यहां नवरात्र के प्रारम्भ से ही भक्तों की प्रतिदिन भीड़ लगी रहती है। मां उल्का देवी अपने भक्तों को भयमुक्त और उनकी रक्षा करती हैं।
नवरात्र के दौरान महाष्टमी और नवमी को उल्का देवी के मंदिर में हजारों श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए आते हैं। सप्तमी को महानिशा पूजा, अष्टमी को महागौरी और नवमी को सिद्धिदात्री देवी के पूजन के बाद हवन और कन्या पूजन में भक्तों की भीड़ जुटती है। दशमी तिथि को शांति पूजा की जाती है।
इसके अलावा उल्का देवी का एक मंदिर अल्मोड़ा के थपलिया महौल्ले में भी बना हुआ है, जिन्हें वहां कि रक्षक देवी माना जाता है।
– सुरकंडा देवी मंदिर (SURKANDA DEVI TEMPLE , DHANAULTI , TEHRI GARHWAL !!)
सुरकंडा देवी मंदिर समुद्रतल से करीब तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर बना है। यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है, जो कि नौ देवी के रूपों में से एक है। सुरकंडा देवी मंदिर 51 शक्ति पीठ में से है। सुरकंडा देवी मंदिर में देवी काली की प्रतिमा स्थापित है। सुरकंडा देवी के मंदिर का उल्लेख केदारखंड और स्कन्दपुराण में भी मिलता है।
सुरकंडा देवी मंदिर ठीक पहाड़ की चोटी पर है। सुरकंडा देवी मंदिर घने जंगलों से घिरा हुआ है और इस स्थान से उत्तर दिशा में हिमालय का सुन्दर दृश्य दिखाई देता है। मंदिर परिसर से सामने बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमनोत्री अर्थात चारों धामों की पहाड़ियां नजर आती हैं ।
– कुंजापुरी देवी मंदिर (KUNJAPURI DEVI TEMPLE, RISHIKESH , TEHRI GARHWAL !!)
दूसरी 2 शक्ति पीठों में सुरकंडा देवी मंदिर और चंद्रब्रदनी देवी मंदिर हैं। यह मंदिर ऋषिकेश से 25 किलोमीटर की दुरी पर स्थित एवम् मंदिर पहाड़ी पर 1676 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। कुंजापुरी देवी मंदिर टिहरी गढ़वाल जिले में पहाड़ी की चोटी पर स्थित तीन सिद्धपीठों ( कुंज पूरी , सुरकुंडा देवी और चन्द्रबदनी सिद्ध) के त्रिकोण को भी पूर्ण करता है।
– झूला देवी मंदिर (JHULA DEVI TEMPLE , CHAUBATIA , RANIKHET !!)
रानीखेत में स्थित झूला देवी मंदिर पहाड़ी स्टेशन पर एक आकर्षण का स्थान है। यह भारत के उत्तराखंड राज्य में अल्मोड़ा जिले के चैबटिया गार्डन के निकट रानीखेत से 7 किमी की दूरी पर स्थित है।
वर्तमान मंदिर परिसर 1935 में बनाया गया है। झूला देवी मंदिर के समीप ही भगवान राम को समर्पित मंदिर भी है। झूला देवी मंदिर को झुला देवी मंदिर और घंटियों वाला मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण क्षेत्र में रहने वाले जंगली जानवरों द्वारा उत्पीड़न से मुक्त कराने के लिए मां दुर्गा की कृपा बनाये रखने के उद्देश्य से किया गया था। मंदिर परिसर में झुला स्थापित होने के कारण देवी को “झूला देवी” नाम से पूजा जाता है।
– अनुसूया देवी मंदिर !! (ANUSUYA DEVI TEMPLE , CHAMOLI !!)
मंदिर का महान पुरातात्विक महत्व है। यह माना जाता है कि यह एकमात्र ऐसा स्थान है जहां भक्त श्रद्धा के निशान के रूप में नदी के चारों ओर घूमते हैं। मंदिर में प्रवेश से पहले भगवान गणेश जी की भव्य प्रतिमा के दर्शन प्राप्त होते हैं। भगवन गणेश की भव्य प्रतिमा के बारे में मान्यता है कि यह शिला प्राकृतिक रूप से निर्मित है। मंदिर का निर्माण नागर शैली में हुआ है।
– माया देवी मंदिर (MAYA DEVI TEMPLE , HARIDWAR !!)
यह मंदिर हिंदू देवी अधिष्ठात्री को समर्पित है एवम् इसका इतिहास 11वीं शताब्दी से उपलब्ध है। माया देवी मंदिर , भारत में उत्तराखंड राज्य के पवित्र शहर हरिद्वार में “देवी माया” को समर्पित है। यह माना जाता है कि देवी के हृदय और नाभि इस क्षेत्र में गिरे जहाँ आज मंदिर खड़ा है और इस प्रकार यह कभी-कभी शक्ति-पीठ के रूप में भी जाना जाता है। देवी माया हरिद्वार की अधिपतिथी देवता है। वह तीन प्रमुख और चार-सशक्त देवता है जो शक्ति का अवतार माना जाता है।
– मनसा देवी मंदिर (MANSA DEVI TEMPLE , HARIDWAR !!)
यह मंदिर मां मनसा को समर्पित है , जिन्हे वासुकी नाग की बहन बताया गया है। कहते है कि मां मनसा शक्ति का ही एक रूप है, जो कश्यप ऋषि की पुत्री थी, जो उनके मन से अवतरित हुई थी और मनसा कहलवाई। मनसा देवी के बारे में यह भी माना जाता है कि मनसा देवी और चण्डी देवी दोनों पार्वती के दो रूप है जो एक दूसरे के करीब रहते है। ऐसा भी माना जाता है कि भगवान शंकर की मन से उभरी एक शक्ति है। ‘मनसा’ शब्द का प्रचलित अर्थ “इच्छा” है ।
– चंडी देवी मंदिर (CHANDI DEVI TEMPLE , HARIDWAR !!)
चंडी देवी मंदिर का निर्माण 1929 में सुचात सिंह , कश्मीर के राजा ने अपने शासनकाल के दौरान करवाया था परंतू मंदिर में स्थित चंडी देवी की मुख्य मूर्ति की स्थापना 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने की थी , जो कि हिन्दू धर्म के सबसे बड़े पुजारियों में से एक है। इस मंदिर को “नील पर्वत” तीर्थ के नाम से जाना जाता है।
– कामख्या देवी मंदिर , पिथौरागढ़ !! (KAMAKHYA DEVI TEMPLE , PITHORAGARH !!)…
एक छोटे से मंदिर के रूप में शुरू हुआ इस मंदिर का सफ़र आज स्थानीय लोगो के प्रयास से बेहद सुन्दर और विशाल मंदिर में तब्दील हो गया है। इस मंदिर कि विशेषता यह है कि यह उत्तराखंड में कामख्या देवी का सिर्फ एक मात्र मंदिर है।
लोगों का विश्वास है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने से लोगो की सारी मनोकामना पूर्ण हो जाती है। कामख्या देवी का मुख्य मंदिर असाम गुवहाटी में स्थित है। यह पूरे उत्तराखंड में प्रमुख है। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि जो भी व्यक्ति इस मंदिर में मन्नत लेके आता है तो उसकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
– पूर्णागिरी मंदिर (PURNAGIRI TEMPLE)
पूर्णागिरि मंदिर उत्तराखण्ड राज्य के चम्पावत नगर में काली नदी के दांये किनारे पर स्थित है। चीन, नेपाल और तिब्बत की सीमाओं से घिरे सामरिक दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण चम्पावत ज़िले के प्रवेशद्वार टनकपुर से 19 किलोमीटर दूर स्थित यह शक्तिपीठ मां भगवती की 108 सिद्धपीठों में से एक है। उत्तराखण्ड जनपद चम्पावत के टनकपुर के पर्वतीय अंचल में स्थित अन्नपूर्णा चोटी के शिखर में लगभग 3000 फीट की उंचाई पर यह शक्तिपीठ स्थापित है अर्थात ” पूर्णागिरी मंदिर”।
– दूनागिरी , अल्मोड़ा (HISTORY OF DOONAGIRI , ALMORA)
– ज्वल्पा देवी मंदिर ( JWALPA DEVI TEMPLE , PAURI GARHWAL !! )…
वर्तमान समय में मंदिर की देखभाल और निर्माण कार्य “अनंतवाल समिति” और “ज्वाल्पा देवी समिति” के द्वारा की जाती है। मां ज्वालपा मन्दिर के भीतर उपलब्ध लेखों के अनुसार “ज्वाल्पा देवी” सिद्धिपीठ की मूर्ति “आदिगुरू शंकराचार्य जी” के द्वारा स्थापित की गई थी।
मंदिर के बारे में विश्वास के अनुसार भगवान अपने भक्तो की हर इच्छा को पूर्ण करते है। इस मंदिर में नवरात्रि के अवसर पर बड़ी ही धूम धाम से उत्सव मनाया जाता है। यहां पर सुन्दर मन्दिर के अतिरिक्त भव्य मुख्यद्वार, तीर्थयात्रियों की सुविधा हेतु धर्मशालायें, स्नानघाट, शोभन स्थली व पक्की सीढ़ियां बनी हुई हैं।
– मां कोकिला देवी (मां भगवती) मंदिर पिथौरागढ़ {Maa Kokila Devi (Maa Bhagwati) Temple Pithoragarh}
देवी भगवती को समर्पित यह मंदिर पिथौरागढ़ जनपद में प्रसिद्ध पर्यटक स्थल चौकोड़ी के करीब कोटमन्या मार्ग से 17 किलोमीटर की दूरी पर कोटगाड़ी नाम के एक गांव में स्थित है। स्थानीय लोगों के अनुसार कोटगाड़ी मूलत: जोशी जाति के ब्राह्मणों का गांव था। एक दौर में माता कोटगाड़ी यहां स्वयं प्रकट हुई थीं और यहीं रहती थीं तथा न्याय भी देती थीं।
देवत्व के लिए प्रसिद्ध इस देवभूमि के कोटगाड़ी ग्राम में कोकिला देवी एक ऐसी देवी हैं, जिनके दरबार में न्यायालय से मायूस हो चुके लोग आकर न्याय की गुहार लगाते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जो फैसला कोर्ट में भी नहीं हो पाता, वह माता के दरबार में बिना वकील के हो जाता है। विरोधी दोषी हुआ तो उसे बेहद कड़ी सजा दी जाती है।
– माता भद्रकाली (MAA BHADRAKALI TEMPLE BAGESHWAR)
वह परम कल्याण का भागी बनता है। माता भद्रकाली का यह धाम बागेश्वर जनपद में महाकाली के स्थान, कांडा से करीब 15 और जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी की दूरी पर सानिउडियार होते हुए बांश पटान,सेराघाट निकालने वाली सड़क पर भद्रकाली नाम के गांव में स्थित है। यह स्थान इतना मनोरम है कि इसका वर्णन करना वास्तव में बेहद कठिन है|
– मां काली मंदिर रानीखेत (MAA KALI TEMPLE RANIKHET)
मां काली के मंदिर तक जाने के लिए सीडिया बनी हुई हैं, जिसे पूरी तरह से मंदिर के पुजारी तथा उनके परिवार द्वारा बनाया गया हैं|
प्रवेश द्वार पर ही कुछ दुकानदार अपनी अस्थाई दुकान लगाये हुए स्थानीय फल आडू, नख आदि बेचते हुए मिलते हैं। हरे- भरे पेड़ो के बीच स्थित काली मां का मंदिर मन को सुकून देता हैं। रानीखेत से 6 किलोमीटर की दूरी पर गोल्फ़ का विशाल मैदान है जो इस मंदिर के समीप ही है।
– बाल सुंदरी देवी मंदिर काशीपुर (BAAL SUNDARI DEVI TEMPLE KASHIPUR)-
उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले में मां बाल सुंदरी देवी मंदिर (चैती मंदिर)। के रूप में भी जाना जाता है। ज्वाला देवी मंदिर और उज्जैनी देवी यह काशीपुर के सबसे लोकप्रिय मंदिरों में से एक है। बहुत से भक्त यहां आध्यात्मिक आनंद में तल्लीन होने और पवित्र तीर्थस्थल पर जाने के लिए आते हैं। द्रोण सागर के पास काशीपुर शहर के पुराने उज्जैन किले के बाद मंदिर का नाम उज्जैनी देवी रखा गया है।
मार्च के महीने में हर साल, मंदिर के परिसर में चैती मेला ’या मेला आयोजित किया जाता है। दूर-दूर से श्रद्धालु मेला देखने आते हैं। बाल सुंदरी देवी मंदिर उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले में काशीपुर में स्थित है। मां बालासुन्दरी का स्थाई मंदिर काशीपुर नगर में अग्निहोत्री ब्राह्मणों के यहाँ बना हुआ है । चंदराजाओं से यह भूमि उन्हे दान में प्राप्त हुई थी । लेकिन कालांतर में इस भूमि पर बालासुन्दरी देवी का मन्दिर का शिलान्यास किया गया । माँ बालासुन्दरी देवी की प्रतिमा स्वर्णनिर्मित है।
– शीतला देवी मंदिर हल्द्वानी (SHEETALA DEVI TEMPLE)
शीतला देवी मंदिर उत्तराखंड राज्य, नैनीताल जिले के हल्द्वानी में स्थित है। यह हल्द्वानी से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भव्य एवं विशाल मंदिर है|
शीतला देवी मंदिर हल्द्वानी का एक बहुत बड़ा आकर्षक मंदिर है। यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है यहां का माहौल काफी शानदार है। यात्रियों को मां के दर्शन के साथ-साथ यहां पिकनिक माना भी अच्छा लगता है।
शीतला देवी जिसे सिताल भी कहा जाता है। शितला मां मंदिर मां शितला को समर्पित एक हिन्दू मंदिर है जिसकी उत्तर भारत, पश्चिम बंगाल, नेपाल, बंग्लादेश और पाकिस्तान में पोक्सदेवी के रूप में व्यापक रूप से पूजा की जाती है।
इतिहासकारों द्वारा सन 1892 में हल्द्वानी अल्मोड़ा मोटर मार्ग के निर्माण से पूर्व तक, दक्षिण पूर्वी क्षेत्रों एवं मैदानी क्षेत्रों से बद्रीनाथ, केदारनाथ, जागेश्वर, बागेश्वर की यात्रा करने वाले यात्री इसी मार्ग से होकर जाया करते थे।
मंदिर के पीछे चंद राजाओं के समय में हाट का बाजार लगाया जाता था तथा वहा लोग दूर-दूर से सामान खरीदने आया करते थें। माना जाता है कि मंदिर के पास ही बदरखरीगढ़ था जो गोरखा राजाओं के द्वारा युद्ध में ध्वस्त कर दिया गया। यहां पर आज भी ध्वस्त दीवारों और पत्थरों में ओखली आदि के अवशेष दिखाई देते हैं।
– वैष्णो माता मंदिर !! (VAISHNO MATA TEMPLE , HARIDWAR !!)
वैष्णो माता मंदिर , हरिद्वार में स्थित एक प्रसिद्ध , पवित्र एवम् लोकप्रिय मंदिर है। यह मंदिर एक नवनिर्मित पवित्र स्थल है जो कि जम्मू कश्मीर के प्रसिद्ध वैष्णो देवी मंदिर की नक़ल है। इस पवित्र मंदिर में तीन प्रमुख देवी लक्ष्मी , देवी काली और देवी सरस्वती हिन्दू देवियों की मुर्तिया शामिल है। यह माना जाता है कि असुर “महिषासुर” को मारने के लिए तीनो देवियों ने वैष्णो देवी का रूप लिया था।
वैष्णो माता मंदिर की मान्यता के अनुसार देवी केवल उन लोगों को आशीर्वाद देती हैं जो वास्तव में आशीर्वादों को उनके दिलों के नीचे से प्राप्त करने का इरादा रखते हैं। वैष्णो माता मंदिर को लाल माता मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। मंदिर के निर्माण को केवल 10 साल हुए है , लेकिन इसकी वास्तुकला के कारण इस मंदिर को लोकप्रियता मिली है। मुख्य मंदिर तक पहुँचने के लिए रास्ता सुरंगों एवम् गुफाओं से भरा हुआ है जैसा कि जम्मू कश्मीर में वैष्णो देवी मंदिर तक पहुँचने का रास्ता है।
– भारत माता मंदिर (BHARAT MATA MANDIR , HARIDWAR !!)
भारत में आमतौर पर जो मंदिर बने है वो भिन्न-भिन्न देवी-देवताओ को समर्पित है लेकिन भारत माता का यह मंदिर उन संत-महात्माओं , विदुषी स्त्रियों एवम् सुर-वीरो को समर्पित है, जिन्होंने देश के सांस्कृतिक , आध्यात्मिक और सामाजिक जीवन में अमूल्य योगदान दिया है। एक तरह से यह मंदिर ऐतिहासिक रत्नों को मूर्ति का रूप देकर उनके बारे में याद करने के लिए बनाया गया है।
जो कि हमारे देश का गौरव कहे जाते है एवम् जिनका नाम इतिहास के सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है। मंदिर में स्थापित सभी मुर्तिया ऐसी लगती है जैसे कि सभी मुर्तिया जीवत हो और उसी समय बोल पड़ेगी। भारत माता मंदिर में रेत से भारत का नक्शा बनाया गया है और लाल , नीली रौशनी से सजा यह नक्शा बड़ा ही आकर्षित करता है।
– सुरेश्वरी देवी मंदिर !! (SURESHWARI DEVI TEMPLE , HARIDWAR !!)
सुरेश्वरी मंदिर हरिद्वार में स्थित एक प्राचीन मंदिर है । यह मंदिर देवी दुर्गा और देवी भगवती को समर्पित है। इस मंदिर को सिद्धपीठ के रूप में भी माना जाता है। हरिद्वारसे 8 किमी की दुरी पर रानीपुर के घने जंगलो में सिद्धपीठ मां सुरेश्वरी देवी ” सूरकूट पर्वत “ पर स्थित है। मंदिर का बड़ा ही पौराणिक महत्व है, इस मंदिर की गणना प्रसिद्ध सिद्धपीठों में की जाती है , जिसका उल्लेख स्कन्दपुराण के केदारखंड में भी मिलता है।
इस मंदिर कि यह मान्यता है कि श्रद्धा भाव से आकर दर्शन करने वालो के भक्तो के कष्टों को मां सुरेश्वरी देवी सहज दूर कर देती है। पुत्र की कामना करने वालो को पुत्र और धन की कामना करने वालो को धन, मोक्ष चाहने वालों को मोक्ष प्राप्ति कर कृपा प्रसाद देने वाली मां सुरेश्वरी देवी के दर्शन करने के लिए श्रृद्धालुओं की भीड़ का तांता लगे रहता है।
जनश्रुति के अनुसार कहा जाता है कि माँ सुरेश्वरी के दर्शन करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। यह भी मान्यता है कि मां सुरेश्वरी देवी के दर्शन से चर्म रोगी और कुष्ठ रोगी निरोगी हो जाते है। नवरात्रि में अष्टमी, नवमी और चतुर्दशी के दिन माँ के दर्शन का विशेष महत्व है, कहा जाता है कि इस दिन देवता भी मां भगवती के दर्शन करने के लिए आते हैं।
– “मां वाराही देवी मंदिर” (MAA VARAHI DEVI TEMPLE)
“वाराही मंदिर” उत्तराखण्ड राज्य के लोहाघाट नगर से 60 किलोमीटर दूर स्थित है। शक्तिपीठ माँ वाराही का मंदिर जिसे देवीधुरा के नाम से भी जाना जाता हैं।समुद्र तल से लगभग 1850 मीटर (लगभग पाँच हजार फीट) की उँचाई पर स्थित है । देवीधुरा में बसने वाली “माँ वाराही का मंदिर” 52 पीठों में से एक माना जाता है।
उत्तराखंड के नैनीताल जिले से लगे पाटी विकासखंड के देवीधुरा में स्थित मां वाराही धाम अटूट आस्था का केंद्र है। आषाढ़ी सावन शुक्ल पक्ष में यहां गहड़वाल, चम्याल, वालिक और लमगड़िया खामों के बीच बग्वाल (पत्थरमार युद्ध) होता है। देवीधूरा में वाराही देवी मंदिर शक्ति के उपासकों और श्रद्धालुओं के लिये वह पावन और पवित्र स्थान है। जहां पहुंचते ही अलौकिक आनन्द की अनुभूति होती है।